
मन ही संगम है,
पाप पुण्य का,
देव दानव का,
सुर असुर का,
मन मे डुबकी लगाओ, पाप के पत्थर बीन के हटाओ,पुण्य के मोती आप ही पाओ।
अपने मन के भीतर छिपे असुर का विनाश कर, सुर की गंगा मे डूब जाओ।
अंदर के दानव का अंधकार जड़ से मिटाओ,मन के देवालय मे अमर ज्योत सदा जलाओ।
इस संगम मे संग्राम कर के सदा के लिए विजयी भवः हो जाओ।
यह भी कुम्भ है, यहाँ भी तीर्थ कर आओ।