
यात्रा होती है शुरू, जब मन ढूंढे कोई गुरु।
हैं गुरु कौन इस विषय पर सब हैं मौन।
किस पर करें विश्वास, कहीं टूट न जाए अपनी आस।
क्यों न ऐसा करें, अपने गुरु स्वयं बनें।
क्या है पाप और पुण्य में अंतर, इतना विवेक है हम सब के अंदर ।
धैर्य, संयम और समझ, सदा से ही है मनुष्य मे विद्यमान, जो है इश्वरिय वरदान।
यही दिव्य गुण करेंगे हमारा मार्गदर्शन, और यही बनेंगे हमारे गुरुजन ।
हम ही हैं शिक्षक हम ही हैं विद्यार्थी, इस गुरुकुल रूपी जीवन पथ के यात्री।