हमारे मन में कभी न कभी यह विचार ज़रूर आया होगा, की, मेरे ही जीवन में इतने कष्ट और कठिनाईयां क्यों? यह दुर्भाग्य मेरा ही क्यों? और फ़िर अपने आसपास के लोगों को देखकर यह भी सोचा होगा की, इनके जीवन में इतना सुख क्यों, इनका यह सौभाग्य क्यों? इसका बहुत ही सहज जवाब है । हमने जैसे कर्म किए हैं हम वैसे ही फ़ल पाएंगे । यह कर्म भले ही इस जीवन काल के ना होकर इससे पूर्व के जन्मों के हों। यह हमारी चेतन स्मृति का हिस्सा नहीं हैं, परंतु हमारी आत्मा का अभिन्न अंग है ।और हमारा जन्म भी इसी उद्देश्य से हुआ है। हम किसी आत्मा के ऋणी हैं तो कोई और आत्मा हमारी ऋणी हैं। और यही हिसाब किताब बराबर करना हमारे जीवन का मकसद है । यह है कर्म चक्र । जैसे कर्म वैसे फ़ल। जब हम इस बात को समझ के आत्मसात कर लेंगे तब हम कभी अपनी तुलना दूसरों से नहीं करेंगे और इर्ष्या, घृणा व जलन जैसे कूविचारों से मुक्त हो जाऐंगे ।
