
प्रकृति पंचमहाभूत से निर्मित है, मनुष्य भी पंचमहाभूत से ही विकसित है ।
दोनों का मूल एक है, सिर्फ स्वरूप अनेक है ।
प्रकृति जब -जब होगी आहत, मानव जाति के अस्तित्व के लिए तब -तब स्थिति होगी घातक।
प्रकृति का जब होगा संरक्षण, तब ही फ़लेगा- फ़ूलेगा यह मानव जीवन ।
अतः हो वह अपनी जीवन पद्धति, जिसमें सबसे पहले आए माँ प्रकृति ।