
जल – जैसे जल मिल जाता है हर रंग में और ढल जाता है किसी भी ढंग में, वैसे ही हमें भी होना है हर बदलती परिस्थिति के संग में।
अग्नि – जिस प्रकार अग्नि में जल के अशुद्धियों का होता है नाश, उसी तरह जीवन तप मे मनुष्य के समस्त विकारों का भी हो जाता है विनाश । अग्नि में तप के ही सोने में आता है प्रकाश।
वायु – कभी सुगंधित पवन तो कभी भयंकर आंधी, हवा तो किसी ने कभी नहीं बांधी। एसे ही निरंतर चलते रहना है जीवन की प्रकृति, चाहे जैसी भी हो इसकी रूप, रंग और आकृति ।
आकाश – विशाल और अंतहीन, चाहे दिन हो या रात, सूखा हो या बरसात, वैसे ही बना रहे हमारा धैर्य व विश्वास भले ही कोई भी हो बात और मन में रहे हर क्षण प्रभू की याद।
पृथ्वी – जैसे कभी बंजर तो कभी हरी भरी, वैसे ही जो भी हो परिस्थिति, चलता रहे निरंतर ज्ञान का आदान-प्रदान हर क्षण, हर घड़ी ।