
एक इच्छा हो जाती है पूरी, तो दूसरी कहीं रह जाती है अधूरी ।
पहली इच्छा हुई पुरानी, तो दूजी की शुरु हो गई नई कहानी ।
इच्छाओं के घेरे में, ज़िंदगी भटक जाती है इसी अंधेरे में।
इस घेरे के उस पार, है सुख, शांति और संतोष आपार।
अब इस इच्छा के घेरे से बाहर निकला कैसे जाए, मन में बार-बार यही सवाल दोहराए।
प्रभु प्रेम के सागर से, क्यों न कुछ बूंदें भर लें अपने मन के गागर में?
क्योंकि जब हम प्रभु शरण आते हैं, तब हमारी आत्मा तृप्त हो जाती है और फ़िर कोई तृष्णा शेष न रह जाती है।
बिल्कुल सही।
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धन्यवाद 👃
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🙏🙏
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