
जीवन अमूल्य है। इसे निरर्थक बातों में व्यर्थ न करें। चन्द घड़ियां ही तो हैं व सांसे अति बहुमूल्य हैं, इन्हे खुश रहने और खुशियां बांटने में सार्थक करें।
प्रकृति का ध्यान रखना अपना ध्यान रखना ही है। हम भी तो प्रकृति का ही एक अंश हैं। प्रकृति की रक्षा से बड़ा कोई धर्म नहीं।
हम हमेशा ही रहते हैं इतने व्यस्त की यह तो भूल ही गए हैं की कैसे होते हैं मस्त! कुछ क्षण कभी एकांत में अपने खुद के साथ बिताएं। स्वयं से जान-पहचान बनाएं। जब खुद को जान जाएंगे तब सभी समस्याओं की जड़ समझ जाएंगे और समाधान भी आप ही जान जाएंगे।
एक बात याद रखने योग्य है, नीयत से ही बनती है नीयती। ईश्वर तक हमारी नीयत पहुंचती है, भले ही किसी भी कार्य का नतीजा दुनिया और लोगों के समक्ष ही क्यों न आता हो।
एक बात और, जब हमारा भाव शुद्ध होगा तो फिर कार्य भी अवश्य सफल ही होगा। और अगर किसी कारणवश वांछित फल न भी मिले तो भी कोई अनिष्ठ तो नहीं ही होगा।
कभी समय मिले तो इस विषय पर अवश्य ही सोचें, की, जो सांसारिकता के पार जाते हैं, वही तो प्रभु के पास आते हैं!